दिलीप पाण्डेय (वरिष्ठ पत्रकार) 

  • देश के असली चाणक्य का पता मिल गया। 

विशेष लेख। जब अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल के अलावा NCP के 40 विधायकों को लेकर बीजेपी सरकार में शामिल हो गए तो उस वक्त शरद पवार बिलकुल मासूम बनकर मीडिया के सामने आए और उन्होंने कहा, थैंक्यू मोदी जी आपने मेरा घर तोड़ दिया ।

दरअसल ये शरद पवार का विक्टिम कार्ड था। उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की है कि उनको तो अजित पवार की बगावत का कोई अंदाजा ही नहीं था और मोदी की शह पर अजित पवार ने धोखेबाजी कर दी । शरद पवार जैसा घाघ नेता मासूम पीड़ित बनकर मोदी के खिलाफ बोलकर अपना वोट सॉलिड करना चाहता है लेकिन बगावत की इनसाइड स्टोरी को जानना बहुत जरूरी है। 

दरअसल अजित पवार, शरद पवार से संगठन के अंदर शक्तिशाली पद मांग रहे थे । लेकिन शरद पवार ऐसा नहीं कर रहे थे क्योंकि वो जानते थे कि अगर अजित पवार को संगठन में शक्तिशाली पद दिया गया और वो अपने हिसाब से नियुक्तियां करने लगे तो वो संगठन को अपने वफादार लोगों से भर देंगे और फिर संगठन पर कब्जा कर लेंगे ।

शरद पवार ने बेहद चालाकी से अजित पवार को नेता विपक्ष का पद दिया । अब नेता विपक्ष जाकर सरकार से मिल जाए ये तो कोई सोच ही नहीं सकता है । शरद पवार ने भी अजित पवार को यही पद देकर संतुष्ट करने की कोशिश की थी लेकिन वो संगठन में पद की मांग पर अड़े रहे । लिहाजा पार्टी में टूटन तय हो गई और शरद पवार ये बात जानते भी थे ।

इसके बाद शरद पवार ने अपना आखिरी दांव भी चल दिया । आपको याद होगा मित्रों शरद पवार ने 2 महीने पहले इस्तीफा दिया था । ये इस्तीफा इसीलिए दिया था ताकी वो सहानुभूति हासिल कर लें और अजित पवार को झुका दें लेकिन अजित पवार ने साफ कह दिया कि शरद पवार को इस्तीफा देकर कुर्सी खाली करनी चाहिए और उस पर छगन भुजबल जैसे पिछड़े वर्ग के नेता को बैठना चाहिए । खिसियाए शरद पवार ने चुपचाप इस्तीफा वापस ले लिया। यानी सब कुछ बिलकुल पानी की तरह साफ है पार्टी पर कब्जे और उत्तराधिकार की लड़ाई शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले के साथ अजित पवार के खिलाफ लड़ रहे थे । ये बात सबको पता भी थी इसमें मोदी का कहीं कोई रोल भी नहीं था ।

शरद पवार पटना में जब विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होने गए थे तो वो अपने साथ प्रफुल्ल पटेल और अपनी बेटी सुप्रिया सुले को भी ले गए लेकिन अपने भतीजे अजित पवार को नहीं ले गए क्योंकि दोनों के बीच खटपट थी। जून के आखिरी हफ्ते में एनसीपी ने दिल्ली के अदंर एक बैठक बुलाई थी उस बैठक में भी अजित पवार को शामिल नहीं किया गया था और उनका फोटो भी पोस्टर में नहीं था । यानी अजित पवार की बगावत कोई नहीं थी । लेकिन अजित पवार के शपथग्रहण के बाद शरद पवार शिर्फ राजनीति करने और जनता को मूर्ख बनाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए थे ।

सही बात ये है कि खानदानी पार्टियों के लिए ताकत भी खानदान ही होता है और कमजोरी भी खानदान ही होती है । मजे की बात ये है कि जो शरद पवार पूरे विपक्ष को मोदी के खिलाफ एकजुट करने चले थे वो अपना ही घर नहीं बचा पाए और अब चुनाव का सिंबल यानी घड़ी भी अजित पवार के खाते में जा चुका है। 

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