चढ रही थी धूप, गर्मियों के दिन, दिवा का तमतमाता रूप उठी झुलसाती हुई लू, रुई ज्यों जलती हुई भू, गर्द चिनगी छा गई, प्रायः हुई दुपहर । वो तोड़ती पत्थर....1937 में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की नारी की करुण दशा को दर्शाती कालजयी रचना... वो तोड़ती पत्थर को लिखे तकरीबन एक सदी होने को है। सौ बरस पहले पर उस कविता में दर्शाई गई नारी की दशा सौ बरस बीतने के बाद भी बहुत कुछ नहीं बदली है । 

इसकी तस्दीक महिलाओं के उत्थान के लिए बनाए गए विभाग में महिलाओं का हो रहा शोषण कर रहा है। दो साल से सर्दी, गर्मी, बारिश से बेपरवाह महिला स्वंय सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं से बराबर विभागीय काम लिया जा रहा है, पर मानदेय के नाम पर उन्हें केवल आश्वासन दिया जाता है।

हरदोई। राष्ट्रीय आजीविका मिशन से जुड़ी महिला स्वंय सहायता समूह की लगभग दो सैंकड़ा आईसीआरपी व सीनियर आईसीआरपी महिलाओं को दो साल का मानदेय का बकाया लगभग एक करोड़ रुपए नहीं दिया गया है। यह बकाया स्वंय सहायता समूह से जुड़ी उन महिलाओं का हैं जो विभागीय अधिकारियों के निर्देश पर गांव गांव जाकर महिलाओं को स्वंय सहायता समूह की जानकारी देती है व उन्हें समूह से जोड़ती है। अपने घर परिवार को छोड़ अपने खर्च पर दूर दराज के गांव जाकर विभागीय लक्ष्य को पूरा करने वाली महिलाओं को 45-45 दिन की ड्राइव करनी होती है। उसके बदले में उन्हे प्रतिदिन का चार सौ रुपया दिया जाता है। महिलाओं का कहना है उन्हे दो साल से मानदेय नहीं दिया गया है। जबकि वो अपनी जमा पूंजी लगा कर विभागीय लक्ष्य को पूरा कर रही हैं। महिला स्वंय सहायता समूह से जुड़ी सीनियर आईसीआरपी रेनू देवी, पूजा मिश्रा, गायत्री देवी, सुनीता पाल, सुमन लता, शीला, राजवती, रेनू वर्मा आदि ने बताया उनके घरों में फांकाकशी की नौबत आ चुकी है। दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया है। अपनी बचत भी वो विभागीय लक्ष्य को पूरा करने में लगा चुकी है। महिला समूह की महिलाओं ने बताया एक एक महिला का विभाग पर 50 हजार से दो दो लाख रुपए तक का बकाया है। 

  • महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने को शुरू की गई थी योजना

महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए देश और प्रदेश की सरकार ने आजीविका मिशन की शुरुआत की है। विभागीय जिम्मेदारों के दिशा निर्देशन में महिला समूह से जुड़ी महिलाएं गांव गांव जाकर महिला समूह बनाती है। 45 दिन दूसरे गांव में रह कर उन्हें 18 से 20 स्वंय सहायता समूह बनाने होते हैं। सीनियर आईसीआरपी महिलाओं को दस दिन में एक संगठन बनाना होता है। इन महिलाओं की मेहनत के बूते ही जनपद में 16 हजार से अधिक महिला स्वंय सहायता समूह बन चुके हैं। तकरीबन 11 सौ संगठन भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। पर इन समूहों और संगठनों को बनाने वाली महिलाएं दो साल से अपनी मेहनत की कमाई का इंतजार कर रही हैं।

आईसीआरपी व सीनियर आईसीआरपी के बकाया होने की जानकारी मिली है। बकाया भुगतान करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जल्द ही बकाया धनराशि का भुगतान कर दिया जाएगा।

मीना सिंह, उपायुक्त राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

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