- तन्हा ज़िंदगी में मिशन आत्मसंतुष्टि ने अपना बन कर अपनाया और आखिरी सफर में भी अपना बन कर दिया अर्थी को कांधा।
हरदोई। तन्हाई में घुट-घुट कर जी रहीं 140 साल की राजरानी का कोई सहारा नहीं था, लेकिन मिशन आत्मसंतुष्टि ने आगे बढ़ कर राजरानी को न सिर्फ सहारा दिया बल्कि उनका सहारा बन कर उन्हें अपनाया। मिशन आत्मसंतुष्टि के आंगन में रह रहीं राजरानी ने रविवार को वहीं आखिरी सांस ली। उनके न रहने पर मिशन आत्मसंतुष्टि के संचालक राजवर्धन सिंह राजू ने बेटा होने का फर्ज़ निभाते हुए राजरानी को उनके आखिरी सफर तक पहुंचाया।
बात हो रही है परसोला की रहने वाली 140 साल की राजरानी की। वैसे तो कभी राजरानी के आंगन में भी खुशियां तैरती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ सब कुछ बदलता चला गया। जो कोई उनका था,उनसे बिछड़ता चला गया। राजरानी की एक बेटी सावित्री सिंह सीतापुर में रह रही हैं। करीब 90 साल का सफर तय कर चुकी सावित्री खुद मजबूर थी कि वह अपनी मां की कैसे देखभाल करें। राजरानी अपने गांव में तन्हा ज़िंदगी गुज़ार रहीं थीं। उसी बीच मिशन आत्मसंतुष्टि के संचालक राजवर्धन सिंह राजू परसोला पहुंचें और वहां 140 साल की राजरानी का हाल देखा,बिना कुछ बोले-बताए वे राजरानी के अपने बन गए और उन्हें अपना कर अपने साथ ले आए। उसके बाद से मिशन आत्मसंतुष्टि का आंगन राजरानी के घर का आंगन हो गया और वे वहीं रहने लगी। मिशन आत्मसंतुष्टि उनके खाने-पीने और दवा-दारू का पूरा बंदोबस्त करती रही। रविवार को राजरानी ने संचालक राजवर्धन सिंह राजू की गोद में आखिरी सांस ली। राजू ने राजरानी की अर्थी को कांधा दे कर उन्हें उनकी आखिरी मंज़िल तक पहुंचाया और बेटा होने का फर्ज़ निभाते हुए उनकी चिता को मुखाग्नि दी। राजरानी तो चली गई लेकिन उनके यादे अभी भी मिशन आत्मसंतुष्टि के साथ जुड़ी है और आगे भी जुड़ी रहेंगी।
- मिशन आत्मसंतुष्टि को मिली संतुष्टि
हरदोई। मिशन आत्मसंतुष्टि ने जिस मिशन के साथ अपना सफर शुरू किया, उसमें न सिर्फ संस्था को बल्कि समाज को संतुष्टि मिल रही है। मिशन तमाम लावारिस शवों का वारिस बन कर उनका अंतिम संस्कार करा चुकी है। इतना ही नहीं तमाम ऐसे लोग जिन्हें उनके अपने ठुकरा चुके थे,मिशन आत्मसंतुष्टि ने उन्हें न सिर्फ सहारा दिया बल्कि उनका सहारा बन कर उनकी बे-रंग हो चुकी ज़िंदगी में रंग भरने का काम किया। मिशन के संचालक श्री राजू का कहना है कि इसी में उन्हें संतुष्टि है।
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