इस कोने से उस कोने तक

आसमान सी विस्तृत नारी

धरती जैसी धैर्यवान है

सृष्टि की अनुपम रचना वो

धरती पर ईश्वर का भेजा

अलौकिक उपहार है ये....

अमिता मिश्रा,मीतू (लेखिका)

लेख। नारी  एक ऐसा सृजन है जो हर परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढाल कर नए नए रास्ते निकाल लेती है। धैर्य ,दया ममता ,करुणा साहस और न जाने कितने गुणों से भरी नारी यदि अपने पर आ जाए तो पत्थर को भी काट कर रास्ता बना सकती है। समाज का अभिन्न अंग है वो सभ्यता की शुरुआत से भविष्य के जीवन की आधारशिला नारी ही तो है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पैदा होते ही जो कंधों पर जिम्मेदारियों को उठाए बेटी ,बहन और न जाने कितने रूपों में स्वयं को सहजता से ढाल लेती है और विवाह पश्चात सर्वथा नवीन माहौल में बहू पत्नी भाभी और देवरानी या जेठानी के रूप में खुद को जितनी आसानी से समायोजित कर लेती है मुस्कुराते हुए वह किसी पुरुष के वश कि बात नहीं।इन सबके बीच स्वयं के लिए स्थान बनाना आसान नहीं होता ,कितनी इच्छाओं को मारना होता, कई बार अपमान के कड़वे घूंट गले से उतारने पड़ते पर हौसला कभी कम नहीं होता। 

एक स्त्री की विशेषता है यह है कि घर के साथ साथ शिक्षा प्राप्त कर आज की स्त्रियां हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती दिख रहीं हैं बिना किसी थकान या शिकायत के। दूसरों के दुःख को स्वयं के भीतर महसूस करना एक स्त्री की ही विशेषता है। मानव समाज का सामाजिक ढांचा स्त्रियों के कंधे पर ही टिका हुआ है यदि स्त्री न हो तो ये ढांचा बिखर जाएगा।

स्त्री सरस्वती लक्ष्मी और दुर्गा का साक्षात रूप है। वे कमजोर नहीं है बस स्वयं से परे सदैव अपने परिवार और समाज की खुशियों में लगातार जुटी रहती हैं। एक निस्वार्थ भाव से भरी ईश्वर की श्रेष्ठ रचना। बदले मे जो कुछ नहीं चाहती ,सिर्फ सम्मान और सच्चे स्नेह की पूंजी ही अधिकतर स्त्रियों की अनमोल धरोहर होती है। बदलते वक्त के साथ स्त्रियों की भूमिका में बदलाव भी आया है किन्तु वे हर कसौटी में खरी उतरती है स्वर्ण के समान ।हर रूप में श्रेष्ठ।

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