हरदोई। यही है वो शख्श बाबा चन्द्रसेन जिन्होंने न केवल हरदोई की पौराणिक होलिका दहन परंपरा को परिचालित किया वरण अंग्रेजो के शासन काल में उस परंपरा के बहाने हिन्दुओ को एकजुट करने का ऐतिहासिक काम किया। पुराने बुजुर्ग बताते है कि हरियाणा के नारनौल जिले में रहने वाले बाबा चन्द्रसेन पंजाब मेल से किसी काम से हरियाणा से बिहार जा रहे थे अचानक हरदोई स्टेशन पर आकर पंजाब मेल ख़राब हो गई और ख़राब तो ऐसी ख़राब की तीन दिन तक सही नहीं हुई हरदोई की आबोहवा उन्हें ऐसी रास आई कि बाबा चंद्रसेन हरदोई के होकर ही रह गये और उन्होंने अपना स्थायी निवास यही बना लिया।
भक्त प्रहलाद की नगरी हरदोई का नाम तो विश्व विख्यात तो है ही लेकिन जब बाबा चन्द्रसेन को हरदोई आकर पता चला की हरदोई में कही होलिका का नाम तक नहीं है तब उन्होंने पंडित और पुरोहितो से उस स्थान की खोज करवाई। पंडितो ने काफी ग्रंथो की खोज की तब उन्हें विष्णु पुराण में जिस ध्रुव जिस अक्षांश जिस स्थान जिस भैगोलिक परिदर्श्य का वर्णन प्राप्त हुआ उसी स्थान पर उन्होंने पुःन होलिका दहन की परंपरा को पूरे विधि विधान से पुनर्जीवित किया। आज उनकी वंश बेला में 200 से अधिक पारिवारिक सदस्य है जो हरदोई की हर विधा में अग्रणी भूमिका निभा रहे है। 169 वर्षो बाद उनके वंशजो की पांचवी पीढ़ी ने उस परम्परा को आज भी जीवित रखा है यही कारण है कि आज भी होलिकोत्सव के दिन सुबह से ही बाबू दुलीचंद्र चौराहे पर मारवाड़ी समाज की महिलाये उपवास रख विधि विधान से गाय के गोबर के बड़कुले (उपलों) और कच्चा सूत जिसे कुकड़ी कहा जाता है से पूजा कर अपने परिवार की लम्बी उम्र की प्राथना करती है कि होलिका माता, जिस तरह आपने अपने बालक प्रहलाद की रक्षा की थी उसी तरह हमारे बच्चो की भी रक्षा करना। अग्रेंजी शासन काल में नई पूजा परंपरा प्रारम्भ करना आसान नहीं था तब बाबा चन्द्रसेन ने बड़ी चतुराई से उच्च अधिकारियो को समझा बुझा कर इस परम्परा की न केवल शुरुआत की वरन उस समय हिन्दुओ को एकजुट होने का एक नायाब तरीका दे दिया यही कारण है की यहां होलिका दहन के तुरंत पश्चात सर्व समाज के सभी लोग एक दूसरे के गले मिलते है और बड़े बुजुर्गो का पैर छूकर आशीर्वाद लेते है।
बाबा चंद्रसेन परिवार के वरिष्ठ सदस्य गौरीशंकर अग्रवाल, अचल अग्रवाल व सोमेंद्र अग्रवाल ने 169वे होलिकोत्सव की जानकारी देते हुए बताया कि इस बार होलिका दहन शाम 7.30 बजे पुजारी के सरंक्षण में समाज के हर वर्ग की उपस्थिति में पूरे विधि विधान से सम्पन्न होगा जिसमे होलिका माता की पूजा कर हलवे पूरी का भोग लगाया जाएगा एवं होलिका दहन के पश्चात गेंहू की नई बालियों के साथ पूजा प्रकिया सम्पन्न होगी। होलिका पूजा का ये सिलसिला अगले दिन होली के रंग चलने तक अनवरत जारी रहेगा जिसमे समाज के सभी धर्मों व वर्गों के हजारों की संख्या में लोग होलिका माता की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। महिलाओं द्वारा पूजन 7 मार्च को सुबह 10 बजे से देर शाम तक चलेगा।
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